ऐ बुढ़िया नानी, अबहुँ बात मानीं ।
जाँत जाँत में पिसा-पिसा के मुअले बहुत परानी,
अक्किल बुध से काम होखो छोड़ीं कुल्ही कहानी ।
ऊ चलिया अब चले ना पाई रोई चाहे कानी,
दुनिया एक बनी, बन गइल कूदीं चाहे फानी ।।
दल के दाल ना गलौ हमनी एगो हिन्दुस्तानी,
मजहब के रँग छूटी-छूटी, छूटी सब शैतानी ।
हिन्दू मुसलमान ईसाई के कईसे पहिचानी,
जात पाँति के रहे ना पाई इचिको नांव निसानी ।
जब सब केहू पढ़ लिख जाई, रही ना ई नादानी ॥
चली ना नेतागिरी आज के चली ना ई मनमानी ।
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