ऐ बुढ़िया नानी - महेंद्र शास्त्री | Budhiya Nani - Mahendra Shastri

ऐ बुढ़िया नानी, अबहुँ बात मानीं ।
जाँत जाँत में पिसा-पिसा के मुअले बहुत परानी, 
अक्किल बुध से काम होखो छोड़ीं कुल्ही कहानी । 
ऊ चलिया अब चले ना पाई रोई चाहे कानी, 
दुनिया एक बनी, बन गइल कूदीं चाहे फानी ।। 
दल के दाल ना गलौ हमनी एगो हिन्दुस्तानी, 
मजहब के रँग छूटी-छूटी, छूटी सब शैतानी । 
हिन्दू मुसलमान ईसाई के कईसे पहिचानी, 
जात पाँति के रहे ना पाई इचिको नांव निसानी । 
जब सब केहू पढ़ लिख जाई, रही ना ई नादानी ॥ 
चली ना नेतागिरी आज के चली ना ई मनमानी ।

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