बदरिया घेरि अइले घनघोर - सतीश्वर सहाय वर्मा 'सतीश' | Badariya Gheri Aaile Ghanghor - Satishwar Sahay Verma 'Satish'

भींगल नयनवाँ के कोर हो 
बदरिया घेरि अइले घनघोर !

तातल पनिया से धुआँ उठि अइले 
छाई गइले अँखिया के बीच, 
जेठवा से भंभुरल करेजवा के रहिया पर 
छिलबिल भरि गइले कीच,

पहिले असढ़वा में 
छाड़ि दिहले घरवा में 
तुरि के सनेहिया के डोर हो !

आधी - आधी रतिया के पिहके पपिहरा 
पिहके परेउआ के परान, 
अँधिया में टूटि उधिअइले सपनवाँ 
खोतवा में बिलखे जहान,

छतिया जे दरकेला 
बँहिया जे फरकेला 
अँचरा के भीरे वहे लोर हो ।

रुइआ के फाहा बनि अइले बदरवा 
पोछे चाहे हृदया के घाव, 
पुरुवा के साथ भागे जइसे निरमोहिया 
भागि गइले छाड़ि के पड़ाव,

लाख वरज करीं 
मनवाँ धीरज धरीं 
जियरा में पइसल जीव के चोर हो ।

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