कवन ऊ कुँवर सिंह ? - विश्वनाथ प्रसाद शैदा | Kavan Oo Kunwar Singh ? - Vishwanath Prasad Shaida

कवन ऊ कुँवर सिंह, बापा रे बापा 
केहू के जवानी ना उनकर बुढ़ापा

बुढ़ापा में ऊ तेग' जेने घुमावसु 
बचे एक बैरी भी जिन्दा न पावसु 
धरा भोजपुर के लहू से जुड़ावसु 
फिरंगिन के मूड़ी उ मन से उड़ावसु

खिंचल जइसे जाला लटाई' प थापा' 
केहू के जवानी ना उनकर बुढ़ापा

पड़े थाप घोड़ा के उनकर सुनाई त, 
गोरा-सिपाहिन के सर के हवाई 
कहीं टोप गिर जा, कहीं नेकटाई 
पड़सु कूद मिलि जा जे रहता में खाई

कहसु कि गइल जान, पापा रे पापा 
केहू के जवानी ना उनकर बुढ़ापा

दधीची के हड्डी निमन जोर वाला 
रहल यार उनुकर बुढ़ापा निराला
अजब सान वाला अजब आन वाला 
भुजा काटि गंगा के कइलन हवाला

मरत दम ना लवलें उ इज्जत प धापा 
केहू के जवानी ना उनकर बुढ़ापा

बोवल बीज उनुके फरल आजु खासा 
रहन बीर सोना, रहन उ न कासा 
परल गोड़ पाछा, न उनुकर जरा सा 
फिरंगिन से 'शैदा' उ लड़ले खुलासा

सुतल सत्रु पर बीर, मारसु ना छापा 
केहू के जवानी, ना उनुकर बुढ़ापा !

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