सुघिया के घिव परे, जरे मोर मनवाँ,
रात दिन बेधेला पिरितिया के बनवाँ!
काटे के दौरेला घरवा अँगनवाँ
बोलिया बोलेला देखि सगरो जमनवाँ
ठारि अन्हरिया नजर के समनवाँ!
दुनिया त रूसल सजनवाँ मनावे
धरती अकसवा के देखि-देखि गावं
जीयरा से चले नाहीं कवनो बहनवाँ
कसकि कसकि उठे सेजरिया
जहरे के तिरिया चलावेले अँजोरिया
सच नाहीं होला कबहुं एको सपानबाँ !
तुलसी के दिया बारी सरजू मनाई
सारी - सारी रतिया पिया के गुहराई
बस में ना देहिया न बस में परनवाँ !
रात दिन बेधेला पिरितिया के बनवाँ !