नेवता बलिबेदी क छोड़िके औरन क कबहू एंह आवत नाहीं मारू जुझारू बजें बजना केहू दूसर राग बजावत नाहीं
छोड़ि के बीर भरी कविता रस दूसर में केहू गावत नाहीं
छूरी-कटारी बिकै सगरो चुरिहारिन गाँव में आवत नाहीं
जोतलि गइ तरुआरिन से भुइँ लोहुन के बदरा अरि अइलैं तालन-तालन धान के थानन सूघर-सूघर माथ छिटइलैं
कइसन जामी अजादी क अँकुर लाल दुकाल' पड़े बलि भइलैं बारिन भोरिन के सेन्हुरा रन केतन में खदिया बनि गइलैं
पूतन से बुढ़वा कहले रहन कइसे चली न रही ऊ जवानी
वेद के मंत्र से पिन्ड लेइच बोल्यऽ तबौं जय देस क बानी
वेद के मंत्र से पिन्ड लेइब बोल्यऽ तबौं जय देस क बानी
पानी बचाइ के ना रखबऽ तब ना लेबै सराध में पानी
Tags:
मुक्तक