तीन मुक्तक - चन्द्रशेखर मिश्र | Teen Muktak - Chandrashekhar Mishra

नेवता बलिबेदी क छोड़िके औरन क कबहू एंह आवत नाहीं मारू जुझारू बजें बजना केहू दूसर राग बजावत नाहीं 
छोड़ि के बीर भरी कविता रस दूसर में केहू गावत नाहीं 
छूरी-कटारी बिकै सगरो चुरिहारिन गाँव में आवत नाहीं

जोतलि गइ तरुआरिन से भुइँ लोहुन के बदरा अरि अइलैं तालन-तालन धान के थानन सूघर-सूघर माथ छिटइलैं 
कइसन जामी अजादी क अँकुर लाल दुकाल' पड़े बलि भइलैं बारिन भोरिन के सेन्हुरा रन केतन में खदिया बनि गइलैं

पूतन से बुढ़वा कहले रहन कइसे चली न रही ऊ जवानी
वेद के मंत्र से पिन्ड लेइच बोल्यऽ तबौं जय देस क बानी
वेद के मंत्र से पिन्ड लेइब बोल्यऽ तबौं जय देस क बानी
पानी बचाइ के ना रखबऽ तब ना लेबै सराध में पानी

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