हम एह पार, ओह पार बा सजनवाँ - श्याम सुंदर ओझा | Ham Aeh Par, Oh Paar Ba Sajanva - Shyam Sundar Ojha

आजु मोरे भरिभरि आवेला नयनवाँ।
जेकरा के अँखिया का रहिया बोलवलीं, 
मन का महलिया में जेके बइठवलीं;
जेकरा खातिर कइलीं दुनिया उजाड़ ऊहो,
निंदिया का संगे-संगे भइल सपनबाँ।

टूटि-टूटि गिरत बा साध के कगरवा,
आसरा के नइया बाटे बिन पतवरवा;
आह का बयरिया के खाई के थपेड़वा,
डोलेला लहरिया के साथे-साथे मतयाँ।

हँसत बसन्त गइले रोइ-रोइ रतिया,
दिन इठलाइ, गइली सिसकति रतिया;
एहि तरे जिनगी का रहिया के मोड़ पर,
रूप में ठगाइ रूकि गइल चरनवाँ।

बिरह के दीप प्रान बतिया बनवली,
सुधि का अँगनवाँ में दियना जरवलीं;
गइले अनेक जुग एहि रे असरवा में,
मिलन के पतिया जुड़इहें परनवाँ।

कई रे जनमवाँ के लेइके सनेहिया,
चलत-चलत थाकि बइठलि देहिया;
उमड़ेला माया के चिकल सिन्धु बिचवा में;
हम एह पार, ओह पार बा सजवनाँ ।

Post a Comment

Previous Post Next Post