लमहर सहरिया के | Lamahar Sahariya Ke | गाँव पे कविता

लमहर सहरिया के ऊँची अटरिया से डर लागे 
अमवा का बगिया में ननकी मड़इया सुघर लागे

अपना अटरिया से उतरे ली धनिया रंगलेली रंगवा से ठोर
चारु ओरी चितवेली तिरछी नजरिया अँइठेली अंगुरी के पोर अपना झड़ोखवा से निरखे सजनवाँ बाँधेला पिरितिया के डोर अँखिया के बतिया करेजवे समाइल चलली-सिनेमवा के ओर हरिन अइसन अँखिया गंगाजल पानी गाँव के तिरिया सुनर लागे लमहरसहरिया के ऊँची अटरिया से डर लागे 

छनिया' पर लतरल झिगुनी तरोड्या' दुअरा बरधिया के जोड़ ओरिया बँड़ेरिया गुटुरु गूँ परेउअवा बच्चा भइल अँखफोर 
काँख तर जाँत लेली सुपुली मउनिया खोस लेली अँचरा बटोर पाछा-पाछा ठुनुकत चलेला बलकवा कहलो ना माने मुँहुजोर बाबा के धिअरिया, पिअरिया पिया के मंगीया के सेन्हुरा उगर- लागे 
लमहर सहरिया के ऊँची अटरिया से डर लागे 

दिगमिग दिगमिग सरसों फुलाइल धरती के बदलल चीर 
भादों के हहाइल' नदिया लजइली दुरबल भइल सरीर
संझिया बिछुड़ल चकवा चकइया चरे चूरे नदिया के तीर 
गोरकी सँवरकी पतरकी बिटिउआ के तीरे-ती रेलागल बाटे भीर न्चनवा सुरजुका लीलार के टिकुलिया पल भर ताकीं त पहर- लागे 
लमहर सहरिया के ऊँची अटरिया से डर लागे 

सिकियाँ जे चिरी चिरी' बिने ली डलिअवा 
कातिके में बाटे भइया दूज 
झारि झुरि केसिया मथवा बन्हवलीं
रंग लेली सड़िया सबूज 
अबकी दसहरा में सइँया ना आवे 
बतियो ना बूझे अबूझ 
भइया जिआवेली भइया मुआवेली 
गाइ गाइ गोधन पूज 
भँइसी पर बइठल अहीरा जे गावे 
बिरहा के बोलिया जहर लागे 
गछिया का पाछा पाछा झँकले गोसइयाँ
हथबा में सोनवा के थाल
सागवा जे खोंटि खोटि भरेली खोंइछवा
झुँकी झुँकी अँचरा सँभाल
साईं के सुरतिये बटोहिया पूछेला
धनि रहिया बतावऽ ततकाल
हम नाहिं जाँनी जाई गउवें में पूछ लेंही 
इँहवा से भुई पाव भर लागे 
मोरा गाँव के तिरिअवा सुनर लागे

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