फागुन आइल हो ! - मदन मोहन सिनहा 'मनुज' l Phagun Aail Ho ! - Madan Mohan Sinha 'Manuj'

आजु होही एहवातिनि फागुन आइल हो
राग मे जग बउराइल धरती रंगाइल हो
हम बिरहा के मारल सुख हिय सालई हों 
जनी मारई रंग के बान कि हम बन वासिनि हो
कवना करनवाँ कुसुम फूले सरसो फुलाई झूमे हो
कवना करनवाँ बवरि लागे बगिया अगराई गइले हो
गमकेले देहिया मे नेहिया कि सुधिया कोइलि बोले हो
बगिया बसन्त सुहागिनि हम हत भागिनि — हो
अइसन कि आँखियों ना देखली कि कस मन भावन हो
सुनते त सिधिया बिसरि गइले लागई सनन सन हो
छुई-मुई इमरी उमिरिया कि कसमस मन करे हो
भरि आँखि देखियो ना पवलीं कि दियरा बुताई गइले हो


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