छलकल गगरिया मोर निर्मोहिया
छलकल गगरिया मोर ।
रहि रहि चँदनिया के चंदा निहारे
धई धई अँचरवा के कोर।
पनघट पपीहा पी-पी पुकारे
पियवा गइले कवनी ओर ।
निर्मोहिया, छलकल गगरिया मोर ।।
मोरवा के ठोरवा मोरिनिया देखावे,
भरि भरि कटोरवा में लोर ।
भँवरा भुलाइल कमलनी के अँगना,
कइसन सनेहिया के डोर ।
निर्मोहिया, छलकल गगरिया मोर ।।
अमवाँ के गछिया पर चहकत चिरईया,
मीठी कोइलिया के बोल ।
महुआ के कोंचवा मदन रस टपके,
बहे पुरवईया सजोर ।
निमोहिया, छलकल गगरिया मोर ॥
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गीत