छलकल गगरिया मोर निर्मोहिया - गंगेश्वर पाण्डेय चंचल | Chalkal Gagariya Mor Nirmohiya - Gangeshwar Pandey 'Chanchal'

छलकल गगरिया मोर निर्मोहिया 
छलकल गगरिया मोर ।

रहि रहि चँदनिया के चंदा निहारे 
धई धई अँचरवा के कोर। 
पनघट पपीहा पी-पी पुकारे 
पियवा गइले कवनी ओर ।
निर्मोहिया, छलकल गगरिया मोर ।। 

मोरवा के ठोरवा मोरिनिया देखावे, 
भरि भरि कटोरवा में लोर । 
भँवरा भुलाइल कमलनी के अँगना, 
कइसन सनेहिया के डोर ।
निर्मोहिया, छलकल गगरिया मोर ।। 

अमवाँ के गछिया पर चहकत चिरईया, 
मीठी कोइलिया के बोल । 
महुआ के कोंचवा मदन रस टपके, 
बहे पुरवईया सजोर । 
निमोहिया, छलकल गगरिया मोर ॥

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