नागिन कान्हा के समुझावे, काहे अइलऽ पानी में ?
मानुस हऽ सूखला के प्रानी, पानी में अँऊजा जइबऽ
पानी नाक-कान में ढूकी, लरुअइब, लँउजा जइबऽ
नागराज उठिहें, फुफुकरिहें, तन काँपी, भहरा जइबऽ
प्रान पखेरू उड़ि जड़हें, तू पानी पर छितरा जइबऽ
आल्हर बाड़ एही से फँसलऽ नादानी में।
तोहरा अस बालक का चाही रहो चुहानी में ।।
अगिन लगावे अइलीं हाँ, नागिन सुनिलऽ पानी में
तोहे बतावे अइली हाँ, बाड़ तूं कतना पानी में
देखिहऽ नागराज चिचिअइहें, पानी-पानी, पानी में
आजु नचाइबि हम उनके पानी पिआइ के पानी में
सरप जहर से तेज जहर हऽ चढ़त जवानी में ।
हम जानि बुझि के अइली हाँ, नाहीं नादानी में ।।
के तोहके बतलावल हा मानुस सूखा के प्रानी हऽ
जल-थल भा आकास जहाँ चाहे एके रजधानी हऽ
पानी के राजा सागर, कुंभज चिरुआ के पानी हऽ
चउदह रतनन के दानी ऊ त आपन जजमानी हऽ
बड़वानल से तेज आग हऽ चढ़त जवानी में।
हम जानि बुझि के अइली हाँ, नाही नादानी में ।।
मर्द उहे ह जे दुसमन के कबहूँ पीठ देखाचे ना
बढ़ि के माथ काटि लेला, गरदन के कवें झुकावे ना
सनमुख काल खड़ा लखिके, जे दइब दइब गोहरावे ना
नाक सुंघउअलि, प्रेम मिलन आ घुचुर-फुचुर बतिआवेना
अरे काल के महाकाल नर, चढ़त जवानी में ।
हम जानी बुझि के अइली हाँ, नाही नादानी में ।।
मर्द उहे हऽ जे जमु से भी बढ़ि के हाथ मिला लेला
जे गजदंत पकड़ि के हुमचेला आ ओके हिला देला
बाघ सिंह के पकड़ि पकड़ि सरकस में नाच नचा देला
चढ़ल हिमालय पर जाके झंडा आपन फहरा देला
ऊँच हिमालय से मानुस हुऽ चढ़त जवानी में।
हम जानि बुझि के अइली हाँ, नाही नादानी में ।।
जो पूरुब के धार रहे, तऽ पच्छिम के पतवार करे
टुटही नझ्या लेके नागिन, भरल समुन्दर पार करे
जे नई कल्पना रोज करे आ रोज नया संसार करे
जेकरा रहते अत्याचारी कवों न अत्याचार करे
अत्याचारिन के गुरु नर हऽ चढ़त जवानी में ।
हम जानि वूझि के अइली हाँ, नाही नादानी में ।।
जो इहवाँ रहबू नागिन तऽ राधा मोर नहइहें ना ।
ग्वाल बाल गईया, मइया जल पीए इहवाँ अइहें ना
जो नर हारल तऽ एह जग में रच्छक केहू रहि जइहें ना
नर सरीर में आवे के तव नारायन ललचइहे ना
नारायन से ऊँच सदा नर चढ़त जवानी में ।
हम जानि बुझि के अइली हाँ, नाही नादानी में ।।
गुलबुल, गुलबुल वात परल कुछ नागराज का कानन में
मानुस का बोली के सुनगुन ऊ पवले अपना मन में
तुरत क्रोध के लच्छन उनका प्रगट भइल सगरे तन में
फुफुकरले तऽ लहरि उठलि पानी का कन- कन में
कृष्ण चन्द्र करिया हो गइले लहर तुफानी में ।
कड़मड़ाई तन उठल कि जइसे जग की घानी में ।।
राधा के मुख मंडल तवबं ले मन मंडल में आ गइले
सगरे जहर उतरि गइले आ तन मन खूब जुड़ा गइले
ताल ठोकि के कान्हा ओह बिखधर का सम्मुख आ गइले
टूटल डाँड़ के डंडा, देखते देखत नाग नथा गइले
बिजुली से अधिका तेजी हऽ चढ़त जवानी में ।
हम जानि बुझि के अइली हाँ, नाही नादानी में ।।
परल नाक पर टान तऽ बिखधर जल का ऊपर आ गइले
फन पर नाचत कान्हा लखि के तीनू लोक चिहा गइले
ग्वाल बाल जसुमति राधा का नयनन में जल छा गइले
आज्ञा भइलि कृष्ण के दह तजि कालीनाग परा गइले
नील बदन पानी चमकल कालीदह पानी में ।
रामविचार टाँठ रहु नित आगी में पानी में ॥