साहित्य रामायण से - श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह | Sāhitya Rāmāyaṇa se - Shri Durgāshankar Prasād Singh

 हरना के हरनी संगे चकवा के चकई संगे सारस साथ सारसी
कपोत कपोतनी के नाचल खेलल खुनल है सलमेलि
आ आपन भी तौ हंसै कुछ ओही नदी के हिलोर में
नहात संगे सीता के लखन जब सिकार रहले खेलत दूर वन में
ते सफेद धार नदी के लहरि में बहते जब रहे
लहरत तवना पर रहे छहरल करिया केस सीता के
अंक भरले राम के साँवरि बाहि घूमि के चारों ओर
बँधले रहे सीता जी के छाती के चट्ठान से
आ माथे के जटा लाम लाम साँप अस पौंड़त रहे
डूबत उतरात बीच केस रासि के सेवार में
थिरकति आँखि सीता के नाचति रहे पुतरी बीच राम के
आ ! राम भी भोराइल मदाइल अलसाइल अस
तकत रहलीं सीता जी के आँखि में डालि आँखि के
सूरज निकसि के कोने झाँकत चन्दा के रहे
एने झाकत चाँद मुख - राम - मुख - छबि राम के रहे

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