मुक्तक : एक चैत - श्री माहेश्वर 'शलभ' | Muktak : Ek Chaita - Shri Māheshwar 'Shalabh'

बिधुरल बरवा अँजुरियन महकै
                    मथवाँ किरिनिया फुलाय ।
गोरिया के मनवाँ पिरीतीअस जागइ
                    जस धन बाँस अँखुवाय ।।


चइता

सगरे भरइलें खरिहनवाँ, हो रामा,
                    हमरे सिवनवाँ ।

        फूलि - फूलि डह डह भइलै परसवा,
        अँजुरी में चाँन थाम्हि हँसेला अकसवा,
सगरे जुड़इलैं परनवाँ, हो रामा,
                    हमरे सिवनवाँ ।।

        कागा बोलि बोलि भोरहरिया जगावै,
        बन क चिरइया  खतोनवा लगावे,
जागि गइलै सगरे सगुनवाँ हो, रामा,
                    हमरे सिवनवाँ ।।

        चुनि-चुनि पतिया बिदेसवाँ पठावें,
        वेर-बेर धना इ सनेसवा लिखावें,
हांफि हांफि दउरै हिरनवाँ, हो रामा,
                    हमरे सिवनवाँ ।।

शब्दार्थ

१. चिथुरल = खुला हुआ; २. बरवा = केश; ३. सगरे = सारा; ४. परसवा पलाश; ५. जुड़इले = प्रसन्न हो गए; ६. खतोनवा = घोसला; ७. वना = स्त्री, नायिका।

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