पिया कहवाँ बिलमि गै - उमाशंकर तिवारी | Piya Kahawa Bilami Gay - Umashankar Tiwari

बेइला फुलै आधी रात हो, पिया क‌हवाँ बिलमि गै । 
कासे कहौं मन के बात हो, पिया कहवाँ बिलमि गै । 

पुरुबे से अइलें मयन ललछहियाँ 
गावै लागी बिंदिया, हँसै लागि बहियाँ 
कजरा त पुछते लजात हो, पिया कहवाँ बिलमि गै ।

मोरी बँसवरिया जोगिनियाँ के डेरा 
बैरिनि पपिनियाँ ऊ बान्हेले घेरा 
एकला त जियवा डरात हो, पिया कहवाँ बिलमि गै।

बाग बगइचे चुकचुहिया बोले 
रहि रहि मनके गँठिया खोले 
जियरा के घउवा पिरात हो, पिया कहवाँ बिलमि गै ।

टहकि अँजोरिया मारेइ बिख बनवाँ 
ढरकि ढरकि बाजू भइलें कँगनवाँ 
अँगुरी बिजुरिया सिहात हो, पिया कहवाँ बिलमि गै ।

रखले झुराइ गइलें हथवा के पनवाँ
तलफि तलफि उठे अल्हर परनवाँ 
रचिको ना किछऊ सोहात हो, पिया कहवाँ बिलमि गै ।

अइलीँ महुवा बारी से मतली बयरिया 
महुवा के सँगे सँगे देली चटकरिया 
लरजि लरजि ललचात हो, पिया कहवाँ बिलमि नै ।

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