रुवाई
मन के बछरू छटक गइल कइसे,
नयन - गगरी ढरक गइल कइसे।
हम ना कहनी कुछ बयरिया से,
उनके अँचरा सरक गइल कइसे ।
गजल
नजरिया के बतिया नजरिया से कहि द ।
ना चमके सोनहुला किनरिया से कहि द ।।
नयन में सवनवाँ बनल बाटे पाहुन,
सनेसवा जमुनिया बदरिया से कहि द ।
लिलारे चनरमा के टिकुली बा चम- चम,
लुका जाय कतहूँ अन्हरिया से कहि द ।
न आवेले सब दिन सुहागिन ई रतिया,
तनी कोहनाइल उमरिया से कहि द ।
नयन के पाखरिया भइल बाटे लब लब,
न छलके भरलकी गगरिया से कहि द ।
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