गाँव - भोलानाथ 'गहमरी' | Gaav - Bholanath 'Gahmari'

काँट - कूस से भरलि डगरिया, घरीं बचा के पाँव रे । 
माटी उपरा छान्ही छप्पर, ऊहे हमरो गाँव रे ॥

चान सुरुज जिनिकर रखवारा 
माटी जिनिकर थाती, 
लहरे खेतन बीच फसिलिया 
देखि के लहरे ले छाती, 
घर घर सबकर भूख मेटावे, नाहीं चाहे नाँव रे। ऊहे०

चारूँ ओर सुहावन लागे 
निरमल ताल तलइया, 
अमवाँ के डढ़िया पर बइठल 
गावे गीत कोइलिया, 
थकल बटोही पल भर बइठें आ बगिया के छाँह रे। ऊहे०

सनन्- सनन् सन् बोले बयरिया 
चरर मरर बँसवरिया, 
घरर् घरर् घर मथनी बोले 
दहिया के कँहत्तरिया, 
साँझ सवरे गइया बोले, बछरू बोले माँव रे। ऊहे०

निकसें पनिया के पनिघटवा 
घूँघट काढ़ि गुजरिया, 
मथवा पर धइ चलें डगरिया 
दुइ दुइ भरल गगरिया, 
सुधिया आवे जो नन्दगाँव के रोवें सौ-सो साँव रे । ऊहे०

तन कोइला मन हीरा चमके 
चमके कलस पिरितिया, 
सरल सोभाव सनेही जिनिकर 
अमिरित वासलि बतिया, 
नेंह भरलि निसकपट गगरिया, छलके ठाँवे ठाँव रे। ऊहे०

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