आपन लेलऽ तँ चदरिया - उदय नारायण सिंह 'उदय' | Udai Narayan Singh 'Udai'

मइली हो गइली चदरिया, हम का करी ?
हमसे भइलीं ठगहरिया, हम का करी ?

ई दुनिया अजगुत कै मेला देखे खातिर अइलीं ।
रंग-बिरंगी चकमक में हम आपन होश भुलइलीं ।
अगवाँ छ्वलसि अन्हरिया, हम का करी ? 

केवनी रसता चलीं तनिको ई हमके ना सूझै ।
गड़हन में गिरली तेवनो पर मनवाँ नाहीं बूझै ।
धोखा खा गइलीं नजरिया, हम का करी ?

मन अरु बचन, करम सब सधलीं एको नाहीं सधाइल ।
केवनी तरह ठेकाने पहुँची रसता मोर भुलाइल ।
भरमवलीं डगरिया, हम का करी ?

बारी सुघर उमिरिया में तूं भेंजलू रतन-बजारी ।
माया क ई जादूगरिनी जोहत रहे दुआरीं ।
बान्ही दीहलसि नजरिया, हम का करीं ?

फरकाँ बइठल माई देखत रहलू तँ नादानी । 
एको बेर अगाह ना कइलू बिगरत रहे जवानी ।
धूमिल हो गइलीं चुनरिया, हम का करीं ?
आपन लेलऽ तँ चदरिया, हम का करीं ?

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