बहार के दिन - श्री रामनाथ पाठक 'प्रणयी' | Bahaar Ke Din - Shri Ramnath Paathak 'Praṇayi'

 डाले-डाल थिरिकेला फूल कचनार के
कतना सुनर लागे दिनवा बहार के

पकड़ी में टूसा लागल
महुआ गुमाने पागल
बरवा के बात में बजार बा - हजार के
कतना...

अमवा प भँवरा बहके
कमवाँ प मनवाँ लहके
अगिया लगावे चाल पछुवा बेयार के
कतना...

फर से लदरि गइले
भुइयाँ सोहरि गइले
लचके उभर लाल नेबुआँ - अनार के
कतना...

लतर - लतर लहसे
गतर - गतर लहसे
ललकी पतइया के लहँगा पसार के
कतना...

अन्नसे भरल अंगना
झनकि रहल कंगना
घरे घरे - बरसेला रस जँतसार के
कतना...

प्रान उमंग भरले
जिनिगी में रंग भरले
छने छन झनकेला तरवा सितार के
कतना...

कूकि के जगावे कोइलि
हाय ! कुहुकावे कोइलि
नयना से सपना उड़ावे भिनुसार के
कतना...

असस लगवले हिया
नेड़ के जरवले दिया
दुअरा प खाड़ गोरी आड़ में किवार के
कतना...

ससुरा - नियार अइले
झाँझ झनकार कइले
सखिया निरेखे लगली मँगिया सवार के
कतना...

रेशमी ओहार दिहले
डोलिया उठाइ लिहले
डेगवा फनात चले टिहुकी कहार के
कतना सुनर लागे दिनवा बहार के

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