साल माथ घहराइल आइल खेती मुँह बइसाख
कोड़ि कमा खाये वाला के दगलि सलामी लाख
सुनहट गाँव उकाँव उठवले मनसायन खरिहान
जहाँ पसेना के गाना बा अनधन बा भगवान
ऊगल माहुर घाम पछिवहीं लूचि अगिनि के बान,
दुपहरिया पाँतर में नाचलि बाँचल अबहीं प्रान ।
पानी भइल परान, पनिसरा बइठल धरम दुआरि,
जिआ जन्तु छिछिआइल' डहके बन-बन जीभि पसारि
कादो इहे बसन्त अंग में बरलि टॅटइनो दाह,
बउराइल मनवा अलसाइल खोजे गुदगर छाँह ।
माकति चललि किरिनि अगिआइलि बान्हि हवाके पाँखि,
खेह उड़लि बड़ि, देहि बुड़लि, भरि धूरि भठाइलि आँखि ।
चाकलि रासि सुहानी कासी, मन्दिल पासे-पास;
झलकल धसँल धूप में जइसे सिववाला कैलास ।
सिर पर पनिहा डोलल, भूसा उड़ि-उड़ि करत किलोल,
लछिमी चरन परल धरती पर आँचर उड़ल अमोल ।
उमड़लि गंगा धारि सिर पर संकर जी महराज,
गरह बनि सँगबाई छुटलन, भूसा रूसल आज
बा किसान झंडा अनाज के ठाढ़ हाथ में थेघ,
डहत मजूर दया आइलि भा ओनवल उज्जर मेघ ।
टपकि टपकि महुआ पतराइल, कोंचा चढ़ल अकास,
निबियी सोन्ह सोन्हाइलि, फूललि-झूमलि खाइ बतास ।
छोट टिकोरा मन ललचाइल, बाउर भइया स्वाद;
छिप-छिपके कोइलिया बोललि आइलि केकर याद !
भोर भइल भेंगरजवा बोलल डोललि मलय बयारि,
मरलसि गमक परोरि, जुड़ाँसी जादू लिहलसि भोरि
अलगल झाँप अन्हार दूर से धाइल साफ सबेर,
उभरल अइसन चित नयन का आगा सरग अनेर ।
पलुहलि गाँछी, छिछिल तलैया, काटल गोजई खेत,
बाट बाट में ठाढ़ अकौवा माला फूल समेत ।
माथ छितनियाँ नबही चलली, बनसपती कि सदेहि,
सर में पागुर करत डहरले चउआ ताकि सरेहि ।,
बँसबारी बारी में चह-चह गूँजि गँजाइल गान,
धरती चूमि फूलाइलि कतहीं, नन्हकी घासि अनाज ।
मनके चउआ कइल द्विराउर धनिया के लखराँव,
बर बहियाँ अँकवारी भरि-भरि जीअल गाँव गिराँव ।
कठिन तपाठी में पवले बा टूसा रसके धारि,
ई धरती के छोह कि पाकड़ि आजु भइलि छतनारि ।
ई धरती के छोहकि दुनया हरियर पी के आगि,
एगो धरती के बेटा के जरल जेठ ले भागि ।