मधुमास - श्री अनिरुद्ध | Madhumas - Shri Aniruddha

ले पहुँचल सन्देस कोइलिया, आइल रे मधुमास ।

उतरल फागुन फूँक रहल बा, नया प्रान बगियन में
मलल गुलाल गाल पर झलके, नरम छोट पतइन में
लाल फुनुगिया-राधा, तरुवर काँधा के सँग रास ।
ले पहुँचल....

करिया मेघ कोइलिया कारी, समय-समय के दूत
चमकल पलक आम मोजराइल, झूलल हरियर तूँत
गाछ-गाछ पर पगिया, मेटल, भेद-भाव के प्यास ।
ले पहुँचल....

गाँव-गाँव में होली उतरल, ढोल-झाल में बोली
रँगल कुसुम में पगिया-अँगिया, कसमस कसमस चोली 
बगिया पहिने धानी चुनरी, लहरे मलय बतास ।
ले पहुँचल....

फूलल फरहद सजल सुहागिन, सजल भाँट बहुरुपिया
लतर-लतर में झुमका झूलत, ओढ़उल के फुलझबिया
कँटइया के पीयर प्याली में छलके मधुमास ।
ले पहुँचल....

चइत राज के अगुआनी में, कनइल बिगुल बजावे
टपक-टपक मग में मदमातल, महुआ नैन बिछावे
सीसो के टिकुली में झलके पिया मिलन के आस ।
हे पहुँचल....


शब्दार्थ

१. तूँत = सहतूत; २. फरहद = एक विशेष वृक्ष; ३. भाँट = भडभार; ४. फुलझबिया = एक आभूषण ।

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