ले पहुँचल सन्देस कोइलिया, आइल रे मधुमास ।
उतरल फागुन फूँक रहल बा, नया प्रान बगियन में
मलल गुलाल गाल पर झलके, नरम छोट पतइन में
लाल फुनुगिया-राधा, तरुवर काँधा के सँग रास ।
ले पहुँचल....
करिया मेघ कोइलिया कारी, समय-समय के दूत
चमकल पलक आम मोजराइल, झूलल हरियर तूँत
गाछ-गाछ पर पगिया, मेटल, भेद-भाव के प्यास ।
ले पहुँचल....
गाँव-गाँव में होली उतरल, ढोल-झाल में बोली
रँगल कुसुम में पगिया-अँगिया, कसमस कसमस चोली
बगिया पहिने धानी चुनरी, लहरे मलय बतास ।
ले पहुँचल....
फूलल फरहद सजल सुहागिन, सजल भाँट बहुरुपिया
लतर-लतर में झुमका झूलत, ओढ़उल के फुलझबिया
कँटइया के पीयर प्याली में छलके मधुमास ।
ले पहुँचल....
चइत राज के अगुआनी में, कनइल बिगुल बजावे
टपक-टपक मग में मदमातल, महुआ नैन बिछावे
सीसो के टिकुली में झलके पिया मिलन के आस ।
हे पहुँचल....
शब्दार्थ
१. तूँत = सहतूत; २. फरहद = एक विशेष वृक्ष; ३. भाँट = भडभार; ४. फुलझबिया = एक आभूषण ।