उमड़लि आवे सुधि के बदरी
रहि रहि बरिसे पानी ।
जिनिगी का खोंता में बइठल
मन के चिरई रोवे
नेहि डोरि से पँखिया बान्हल
भार दरद के ढांवे
नाचे लोर नयन के दरपन झलके पीर-कहानी।
झाँझरि नइया परलि भँवर में
डगमग - डगमग डोले
हहर - हहर नदिया, पुरवैया
सनन - सनन सन बोले
दूर खेवैया इहाँ नेह के बूड़ति बाइ निसानी।
राह निरेखत सुख के भैया
अँखिया भइली पानी
अनकर पीरा आन न जाने
बात करे मन मानी
विरिथा जरे साध के दियरा ढरे अनेर जवानी।
अँखियन के आँसू पी पी जे
जरत पियासि बुझावे
समुझ न आवे आह प्रानी के
दुनिया का समुझावे
सुख के सपने देखत जेकर सगरी उमिर सिरानी।