वासन्ती बिरहा | Vāsanti Birha

रूप नाहीं दिहल कोइलिया के विधना लूँ,
सोना में न दिहल सुवास ।
दोहना का कोखिया में मोतिया जनमली,
कंटवा का गोदी में गुलाब ।।

झुमका पहिरि झूमे, छोटकी महुलिया जे,
गम-गम गमकेला बागि ।
सरदी बेदरदी ना बिरहिनि अंगना में
हियरा में धन्हकेला आगि ।।

अँचरा का तरे गोरी दियना ले जात बाड़ी,
दियना डहकि पीठे माथ ।
कंचन के काया लेले कलपेला कोरवा में
विधि काहें दिहले ना हाथ ।।

रंगवा का पनिया में चुनरी रंगइली आ
सोनवा का पानी में सरेहि ।
महुआ मदन रस टपकेला बगिया में
मातल वसन्तवा में देहि ।।

अमवाँ का डढ़िया से कुहुके कोइलिया कि
बनवा में फूलेला परास ।
अँचरा उड़ाइ के करेला बरजोरिया ऊ,
गोरिया का सँगवा बतास ।।

होली बटमरिया डहरिया में फाले फाले,
अँखिया में झोंकि देता धूरि ।
कइसे चलइवऽ तूं राज ऋतुराज आज,
आल्हर जवानी नाहीं लूरि ।।

खेतवा का डाड़े डाड़े घूमे अनपूरना हो,
मथवा भर ले के चले बोझ ।
धरती का परती में अइली जवनियाँ कि,
करे खरिहान देहि सोझ ।।

अँमवा का डढ़िया से कुहुके कोइलिया कि
रसे-रसे बहे ले दयारि ।
खन-खन बाजे ले पयलिया पतइया के,
बगिया के होखता उजारि ।। 

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