एक मुक्तक : एक गीत - श्री 'सरोजेश' गाजीपुरी | Ek Muktak : Ek Geet - Shri 'Sarojesh' Gajipuri

एक जवानी बहक गइल होत
बात ई दूर तक गइल होत
हम न होती  त आज पनघट पर 
रस के गागर छलक गइल होत


सावन अगराइल परदेसी घर आइल रे

बदरा पर बदरा के करिया डोला डोलल
गोरिया हुलसाइल वा मन के पपिहा बोलल

धरती क बेटी हरिअर - हरिअर सारी में
झूला झूलें झूमैं खेतवन के कियारी में

चमकल रस के बिजुरी धरती के अंगना में
अँझुराइल' अँचरा बा अन्हियारे कंगना में

गाँवन गाँवन में ढोलक-मन्जीरा बाजल
खेतवन के मेढ़िन पऽ आल्हा विरहा गूँजल

धरती क बेटा जे मेहनत के जादूगर
उपिजावे माँटी से सोना, बाँटे घर- घर

कोना-अंतरा भींजै मन क बाजल सहनाई
बदरा अब करिहें धरती के घर पहुनाई

रिमझिम के बंसी सुन गोरिया हुलसाइल रे
सावन अगराइल परदेसी घर आइल रे


शब्दार्थ:

१. अगराइल = इतरानो, प्रसन्न होना; २. हुलसाइल = आहादित, मगन होना;  ३. अँसुराइल = उलझना, फँस जाना;  ४. अन्हियारे = अँधेरा ।

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