एक जवानी बहक गइल होत
बात ई दूर तक गइल होत
हम न होती त आज पनघट पर
रस के गागर छलक गइल होत
सावन अगराइल परदेसी घर आइल रे
बदरा पर बदरा के करिया डोला डोलल
गोरिया हुलसाइल वा मन के पपिहा बोलल
धरती क बेटी हरिअर - हरिअर सारी में
झूला झूलें झूमैं खेतवन के कियारी में
चमकल रस के बिजुरी धरती के अंगना में
अँझुराइल' अँचरा बा अन्हियारे कंगना में
गाँवन गाँवन में ढोलक-मन्जीरा बाजल
खेतवन के मेढ़िन पऽ आल्हा विरहा गूँजल
धरती क बेटा जे मेहनत के जादूगर
उपिजावे माँटी से सोना, बाँटे घर- घर
कोना-अंतरा भींजै मन क बाजल सहनाई
बदरा अब करिहें धरती के घर पहुनाई
रिमझिम के बंसी सुन गोरिया हुलसाइल रे
सावन अगराइल परदेसी घर आइल रे
शब्दार्थ:
१. अगराइल = इतरानो, प्रसन्न होना; २. हुलसाइल = आहादित, मगन होना; ३. अँसुराइल = उलझना, फँस जाना; ४. अन्हियारे = अँधेरा ।