कुहुकलि कोयल भोर रे !
खुलल भोर के द्वार,
उषा के बंसी बजल सजोर रे।
कारी अधियारी रतिया में,
मनवाँ बहुत डरायल।
दूर देस में पिया बसेरा,
पाती एक ना आयल।
सुधि आवे जब-जब हियरा में,
भरि-भरि आवे लोर र॥ बँसी बजल सजोर रे॥
रहि-रहि पलक कचहुँ लगि जावे,
सपना में केहू भरमावे।
मनवाँ उड़े साँस के रथ पर,
लबटि-लबटि फिरि आवे॥
एइसन फँसल मोह के पिंजरा,
निनिया भयल अथोर रे॥ बंसी बजल सजोर रे॥
चन्दा नाचे, तरई नाचे,
नाचे प्रान, पखेरू।
जोगी नाचे, जंगम नाचे,
मिटल न हिय के फेरू।
उड़ि-उड़ि गइले नभ के द्वारे,
मिलल न सजग अंजोर रे॥ बंसी बजल सजोर रे॥
फुलवा फुनगी पर मुसुकायल,
बदरा देखि भोर अगरायल,
हँसि-हँसि जरल पतंग दीप पर
मोती बनि छितरायल।
पी-पी, पी-पी पपिहा बोलल,
कुडुकलि कोयल भोर रे॥ बंसी बजल संजोर रे।
सुकवा उगल किनार सजायल,
ललका लमहर चउक पुरायल,
दखिन देस के मिलल सनेसवा,
हरिअर साज सजायल।
सजि-सजि खेले किरन-किरन से, सपन टूटल ना तोर रे॥
खुलल भोर के द्वार, उया के बंसी बजल सजोर रे॥